देहरादून। उत्तराखण्ड में तबादला उद्योग खूब फल फूल रहा है। धामी सरकार में भी जिस तरह से थोक के भाव तबादले दर तबादलों की सूचियां जारी हो रही हैं उससे तो यही लगता है कि त्रिवेन्द्र राज में थोड़ा धीमें पड़े इस उद्योग ने फिर रफतार पकड़ ली है। उत्तराखण्ड में नेताओं के लिए खाने-कमाने के लिए अब जो कुछ बचा है उसमें खनन, शराब और तबादला उद्योग ही प्रमुख हैं। खनन का आलम तो यह है कि चुनाव से ठीक पहले थोक के भाव पटटे व स्टोन क्रेषर बांट दिए गए। बहुतेरी खनन संपदा होने के बावजूद आलम यह है कि राज्य में खनन से राजस्व बामुश्किल तीन सौ करोड़ भी पार नहीं कर पा रहा है, इसकी वजह खनन माफिया और नेताओं , नौकरशाहों की आपसी सांठगांठ ही है। खनन माफिया का राज्य में ऐसा रसूख है कि वे कायदे-कानूनों की पैरवी करने वाले नौकरशाह को लम्बे समय तक कुर्सी पर बैठने तक नहीं देते। जीएमवीएम की प्रबन्ध निदेषक स्वाति भदौरिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है। जब खनन के मामलों में उन्होंने सख्ती दिखाई तो खनन कारोबारियों ने उन्हें ही चलता करवा दिया। जीएमवीएन के करोड़ों रूपये दबाए बैठे खनन कारोबारियों लो जब लगा कि स्वाति भदौरिया से उनकी दाल नहीं गलने वाली तो उन्हें ही जीएमवीएन की कुर्सी से चलता करवा दिया गया। इस फेरबदल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आईएएस स्वाति भदौरिया की जगह पीसीएस अफसर बंशीधर तिवारी को तैनात कर दिया गया है।
खनन माफिया को आंख दिखाने पर आईएएस स्वाति भदौरिया से छिनी जीएमवीएम की कुर्सी!
