December 22, 2024
आज प्रेस क्लब देहरादून में आयोजित प्रदेश स्तर की बैठक में राज्य के विपक्षी दलों एवं विभिन्न जन संगठनों ने राज्य में बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था, बढ़ते हुए नफरती प्रचार एवं सरकार की निष्क्रियता पर आक्रोश जता कर चिंता व्यक्त की कि इस प्रकार के आपराधिक कार्यों से लोगों को नुक्सान भी हो रहा है और उत्तराखंड राज्य बदनाम भी हो रहा है।
प्रतिनिधि देहरादून, नैनीताल, भवाली, रामनगर, गरुड़, पिथौरागढ़, सल्ट, हल्द्वानी, बागेश्वर, हरिद्वार, टिहरी, और राज्य के अन्य शहरों से आये थे। प्रतिभागियों ने सर्व सहमति से प्रस्ताव पारित कर कहा कि सत्ताधारी दल एवं चंद संगठनों द्वारा फैलाये जा रहे नफरती प्रचार के साथ आपराधिक धमकियाँ दी जा रही है एवं सांप्रदायिक कार्यक्रमों आयोजित किये जा रहे हैं।   देश भर से और न्यायालयों की ओर से आलोचना होने के बावजूद सरकार ज़िम्मेदार लोगों एवं संगठनों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। किसी भी प्रकार के यौन शोषण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, लेकिन उन घटनाओं के बहाने धर्म के आधार पर निर्दोष लोगों को निशाना बनाना, यह भी अपराध है। सरकार अपना सांवैधानिक फ़र्ज निभाने की बजाय लगातार पक्षपात के पक्षपात करते हुई दिखाई दे रही है। उत्तराखंड दुनिया भर में चिपको आंदोलन, प्राकृतिक सुंदरता एवं शांतिपूर्ण राज्य के नाम से जाना जाता है। लेकिन इस हिंसक अभियान की वजह से राज्य की छवि भी ख़राब हो रही है। प्रस्ताव सलग्न।
राजनैतिक दलों की और से भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मा-ले) के राज्य सचिव इंद्रेश मैखुरी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कौंसिल सदस्य समर भंडारी, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डॉ SN सचान, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के लेखराज, और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रभात ध्यानी ने बैठक को सम्बोधित किया। कांग्रेस पार्टी की मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने समर्थन जताते हुए कहा कि पार्टी के पूर्व राज्य अध्यक्ष प्रीतम सिंह की माँ के देहांत होने की वजह से कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगे लेकिन वे प्रस्ताव के साथ हैं।
जन संगठनों एवं बुद्धिजीवियों की और से वरिष्ठ पर्यावरणविद और उत्तराखंड इंसानियत मंच के संयोजक डॉ रवि चोपड़ा; उत्तराखंड लोक वाहिनी के अध्यक्ष राजीव लोचन साह; उत्तराखंड महिला मंच की कमला पंत एवं गीता गैरोला;  वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोचन भट्ट; उत्तराखंड सर्वोदय मंडल के इस्लाम हुसैन और गोपाल भाई; वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी; समाजवादी लोक मंच के मुनीश कुमार; चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल; रचनात्मक महिला मंच के अजय जोशी; वन गुज्जर ट्राइबल युवा संगठन के मोहम्मद इशाक; जन संवाद समिति के सतीश धौलखंडी; और अन्य प्रतिनिधियों ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया। AITUC, SFI, क्रांतिकारी लोक संगठन, प्रगतिशील महिला मंच, और अन्य संगठनों के प्रतिनिधि भी कार्यक्रम में शामिल रहे।
बैठक में निर्णय लिया गया है कि संविधान के मूल्यों एवं जनता के हक़ों के लिए जारी आंदोलन को आगे बढ़ाया जायेगा और प्रदेश भर में और लोगों तक पहुंचवाने की कोशिश की जाएगी।
19 जून को उत्तराँचल प्रेस क्लब, देहरादून में आयोजित किये गए सम्मेलन में सर्व सहमति से पारित हुआ प्रस्ताव_
उत्तराखंड राज्य की शांतिपूर्ण, लोकतान्त्रिक संस्कृति हमेशा रही है। यह वह धरती है जहाँ पर लोगों ने वन आंदोलन द्वारा अंग्रेज़ों और टिहरी के राजा, दोनों को चुनौती दी थी; जहाँ पर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जैसे इंसानियत एवं देशभक्ति के प्रतीक पैदा हुए थे; जहाँ पर सरला बहन से ले कर नशा नहीं रोज़गार दो आंदोलन तक, लोगों ने अहिंसा एवं लोकतान्त्रिक तरीकों द्वारा हर प्रकार के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उत्तराखंड दुनिया भर में चिपको आंदोलन, प्राकृतिक सुंदरता एवं शांतिपूर्ण राज्य के नाम से जाना जाता है।
लेकिन वर्त्तमान में इस राज्य की संस्कृति एवं राजनीति को बदलने का प्रयास चल रहा है। गुंडागर्दी, नफरत एवं दमन को लगातार सत्ताधारी दल एवं कुछ चंद संगठनों द्वारा फैलाया जा रहा है। निर्दोष लोगों को धर्म के आधार पर प्रताड़ित किया जा रहा है। प्रशासनिक कारवाई को सांप्रदायिक रंग दे कर सरकार कानून को ताक पर रख कर धर्मस्थलों एवं लोगों को हटा रही है।  हर प्रशासनिक काम को सांप्रदायिक रंग देने से प्रभावित लोगों को भारी नुक्सान होता है और उसके साथ साथ कानून के राज कमज़ोर हो रहा है और इस राज्य की छवि ख़राब हो रही है। इस राज्य की अर्थव्यवस्था पर्यटन आधारित है, इसलिए ऐसे माहौल से राज्य का पूरा अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव होगा।
सवाल यह उठता है कि चाहे यौन शोषण हो या भूमि का सवाल हो, सरकार अपनी संवैधानिक फ़र्ज़ निभाने के बजाय लगातार पक्षपात करते हुए दिखाई दे रही है। राज्य में बढ़ते हुए महिला शोषण पर इन संगठनों  अपनी चूपी कभी तोड़ते नहीं है, लेकिन पुरोला जैसे घटना में, जहाँ पर शिकायतकर्ता खुद ही कह रहा है कि अपराध धर्म से कहीं संबंधित नहीं था, झूठ प्रचार को फ़ैलाने में एवं शान्ति को तोड़ने में वह लोग सक्रिय हो जाते हैं और प्रशासन मूकदर्शक बन जाता है। इसके अतिरिक्त जो सत्ताधारी दल के साथ हैं उनके अपराधों पर कारवाई मात्र दिखावे के लिए हो रही है या होती ही नहीं है।  उत्तराखंड में जिस सरकार ने भूमि पर लेन देन की शर्तों को खत्तम कर राज्य की लूट के लिए दरवाज़ह खोल दी थी, वही सरकार अभी ज़मीन के सवालों पर अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रहा है।
इसलिए उत्तराखंड की विरासत, हमारी अस्मिता और राज्य की जनता के हक़ों को बुलंद करने के लिए हम इसलिए चाहते हैं कि:
– महिला सुरक्षा को स्थापित कराने के लिए, सामाजिक सौहार्द को कायम रखने के लिए एवं भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए भीड़ की हिंसा, पुलिस स्वतंत्रता एवं लोकायुक्त को ले कर सारे क़ानूनी प्रावधान एवं उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर अमल हो। हर व्यक्ति के लिए कानून एक होना चाहिए चाहे उसका धर्म, जात, लिंग या राजनैतिक संबंध  कुछ भी हों।
– सरकार वन अधिकार कानून पर अमल कर और 2018 का भू कानून संशोधन को रद्द कर ज़मीन एवं वनों पर जनता के हक़ों को सुनिश्चित करे, जिससे राज्य के संसाधन सुरक्षित रहेंगे।
– अर्थव्यवस्ता को जनहित रूप में चलाया जाये एवं रोज़गार को बढ़ाया जाये, इसके लिए सारे कल्याणकारी योजनाओं, मज़दूर एवं किसान के हित में कानून, एवं जनहित नीतियों पर व्यापक रूप से एवं असरदार रूप से अमल हो।
इन कदमों से हमारे पूर्वजों के सपनों के रास्तों पर हम चल सकेंगे और इस राज्य की असली विकास कर पाएंगे।
नफरत नहीं, रोज़गार दो!
कौमी एकता ज़िंदाबाद!

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