पूर्व विधायक मनोज रावत ने इस मामले में लिखी एक खुली पाती
हर राज्य के कुछ प्रतीक होते हैं जिन पर उस राज्य या क्षेत्र के निवासी स्वयं पर गर्व करते हैं। केदारनाथ मंदिर, केदारपुरी और हिमालय केवल केदारघाटी ही नहीं उत्तराखंड के हर निवासी के लिए थाती हैं। केदारखंडी होना दुनिया में हमारे गौरव को बढ़ाता है।
क्या कोई उत्तरखंडवासी अपने गौरव को बांटने देगा , उसके हिस्से होने देगा ? इस शिलान्यास के हर कदम पर यह ही दिखाने की कोशिश की गई है कि जैसे द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से हिमालय स्थित केदारनाथ से जुड़ा कोई ट्रस्ट दिल्ली में मंदिर बना रहा हो। आमंत्रण पत्र से अगर छोटे शब्दों में लिखा दिल्ली हटा दिया जाय तो आमंत्रण पत्र का हर शब्द, उस पर लगा फ़ोटो, श्री केदारनाथ धाम शब्द का प्रयोग और ले आउट से कोई भी साधारण जन या सनातनी यही समझेगा कि हिमालय के केदारखण्ड स्थित वास्तविक केदारनाथ मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ अपना कोई ही कोई मंदिर दिल्ली में बना रहा है।
मीडिया ने भी लिखा” अब नई दिल्ली में होंगे केदारनाथ के दर्शन” …”धाम की तर्ज पर नई दिल्ली के बुराड़ी में होंगे केदारनाथ के दर्शन” ….उत्तराखंड सरकार और पर्यटन विभाग की ओर से केदारनाथ धाम की तर्ज पर नई दिल्ली के बुराड़ी में श्री केदारनाथ मंदिर के निर्माण का कार्य कराया जाएगा।
सुना है ऐसी खबरें कई अखबारों में या पोर्टलों में छपी हैं। अगर ये खबरें गलत हैं तो राज्य का सूचना विभाग क्या करता है। विभाग के अलावा एक प्राइवेट कंपनी भी काम करती है। देश में ये पहला आमंत्रण पत्र होगा जिसमें क्यू आर (Q R code) लगा होगा ।
फिर ये सुरेंद्र रौतेला जो स्वयं को श्री केदारनाथ धाम ट्रस्ट के फाउंडर और राष्ट्रीय अध्यक्ष बता रहे हैं ये कंहा के महंत हैं ? इनका सनातन धर्म के लिए क्या योगदान है ?
ये सभी प्रश्न हर उत्तरखंडवासी और केदारखंडी के लिए चिंतनीय हैं। माननीय मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami जी को आयोजकों को समझा बुझा कर समय रहते ट्रस्ट से नामों का परिवर्तन करा लेना चाहिए। ताकि समय रहते सारी आशंकाएं समाप्त हो जाएं।
Ajendra Ajay जी वर्तमान में आप केदार और बदरी के सम्मान के संरक्षक हैं । ये शब्द आपको पेटेंट करवा लेने चाहिए ताकि कोई इनका प्रयोग न कर सके। आपको इन आयोजकों पर कानूनी कार्यवाही करनी चाहिए थी। आपकी लड़ाई केदारी लड़ रहे हैं वे हर विचारधारा के हैं। उनमें सभी में कांग्रेसी मत देखिए , उन सब को कांग्रेसी घोषित मत करिए । सोने वाले प्रकरण में भी यही गलती हुई थी।
आयोजकों की इन हरकतों और उन्हें मिले कुछ संतों व सरकार के संरक्षण के कारण अगर हर उत्तराखंडी सनातनी गुस्से में है तो उसका गुस्सा होना स्वाभाविक है। केदारी लोग इस बार यात्रा में सरकार के हर निर्णय से दुखी हैं उन्होंने बड़ा नुकसान और अपमान झेला है। उनके मन में कई आशंकाएं हैं । कई प्रश्न हैं । उनका निराकरण भी समय रहते सरकार या उसके जिम्मेदार लोगों को ही करना चाहिए। अगर वे नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं तो उनकी नाराजगी भी स्वाभाविक है।
अब ये कैसे हो सकता है कि , हमारे लोग नाराज हों और हम मुंह छुपा कर बैठ जाएं ? वरना यदि दिल्ली में कोई दिव्य भव्य शिव मंदिर बनता है तो हम शिव भक्त केदारी उसका स्वागत ही करेंगे ।