April 27, 2024

नई दिल्ली: कर्नाटक के मुख्यमंत्री के सिद्धारमैया ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने राज्य में शनिवार से हिजाब पर प्रतिबंध के आदेश को वापस लेने का निर्देश दिया है. उक्त प्रतिबंध बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार द्वारा लगाया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, यह कहते हुए कि राज्य में शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध 23 दिसंबर से हटा दिया जाएगा, सिद्धारमैया ने कहा कि पोशाक और भोजन का चुनाव व्यक्तिगत है और किसी को भी इसमें दखल नहीं देना चाहिए.

एक उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए सिद्धारमैया ने भाजपा पर निशाना साधा और कहा, ‘वे कहते हैं ‘सबका साथ, सबका विकास’ लेकिन टोपी, बुर्का पहनने और दाढ़ी रखने वालों को दरकिनार कर देते हैं. क्या उनका यही मतलब है?’

जब भीड़ में से किसी ने हिजाब पहनने पर प्रतिबंध के बारे में पूछा, तो मुख्यमंत्री ने कहा, ‘नहीं (प्रतिबंध). आप हिजाब पहन सकती हैं. मैंने (अधिकारियों को) निर्देश दिया है कि कल से कोई प्रतिबंध नहीं होगा. आप जो चाहें पहन और खा सकते हैं. यह आप पर निर्भर करता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘आपकी पसंद आपकी है और मेरी पसंद मेरी है. यह इतना आसान है. मैं धोती और कुर्ता पहनता हूं, और आप पैंट और शर्ट पहनते हैं. यह आपकी पसंद है. इसमें ग़लत क्या है?’

ज्ञात हो कि फरवरी 2022 में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकने वाले राज्य शिक्षा संस्थानों के फैसले को मान्य करते हुए कर्नाटक की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कहा था कि ‘समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए.’ राज्य सरकार के अनुसार, कक्षाओं में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं था.

प्रतिबंध के कारण राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे और कई छात्र आदेश के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में चले गए. अदालत ने मार्च 2022 में प्रतिबंध को बरकरार रखा था और उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया कि हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है.

खंडित आदेश देने वाली पीठ में शामिल जस्टिस हेमंत गुप्ता (अब सेवानिवृत्त) ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील को खारिज कर दिया था, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने इसकी अनुमति दी थी.

जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि यह केवल एकरूपता को बढ़ावा देने और एक धर्मनिरपेक्ष वातावरण को प्रोत्साहित करने के लिए था. वहीं, जस्टिस धूलिया ने राज्य और हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर कक्षाओं में हिजाब पहनने के अधिकार को ‘पसंद का मामला’ और ‘मौलिक अधिकार’ कहा था.

उल्लेखनीय है कि हिजाब को लेकर यह विवाद उडुपी जिले के एक सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज में सबसे पहले तब शुरू हुआ था, जब छह लड़कियां दिसंबर 2021 में हिजाब पहनकर कक्षा में आईं और उन्हें कॉलेज में प्रवेश से रोक दिया गया.

उनके हिजाब पहनने के जवाब में कॉलेज में हिंदू विद्यार्थी भगवा गमछा पहनकर आने लगे और धीरे-धीरे यह विवाद राज्य के अन्य हिस्सों में भी फैल गया, जिससे कई स्थानों पर शिक्षण संस्थानों में तनाव का माहौल पैदा हो गया था.

भाजपा ने प्रतिबंध वापस लेने का विरोध किया

कर्नाटक के मुख्यमंत्री द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध को वापस लेने की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कर्नाटक भाजपा ने कहा कि सिद्धारमैया राज्य में धर्म का जहर बो रहे हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कर्नाटक भाजपा ने कहा, ‘बच्चों को एक समान शिक्षा मिले इसके लिए स्कूलों और कॉलेजों में एक समान नीति लागू की गई है. इसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है. हालांकि, मुख्यमंत्री यूनिफॉर्म के मुद्दे पर स्कूली छात्रों के मन में मतभेद पैदा कर रहे हैं.’

कर्नाटक भाजपा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘सिद्धारमैया पीएफआई के गुंडों और अल्पसंख्यकों को खुश करने के लिए वोट बैंक के लिए संविधान में ही संशोधन करने जा रहे हैं. आने वाले दिनों में लोग खुद इसे सबक सिखाएंगे.’

वहीं, राज्य भाजपा प्रमुख विजयेंद्र येदियुरप्पा ने शैक्षणिक संस्थानों की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के बारे में चिंता व्यक्त की.

विजयेंद्र येदियुरप्पा ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब प्रतिबंध को वापस लेने का मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का निर्णय हमारे शैक्षणिक स्थानों की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति के बारे में चिंता पैदा करता है. शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक पोशाक की अनुमति देकर कर्नाटक सरकार युवा दिमागों को धार्मिक आधार पर बढ़ावा दे रही है और विभाजित कर रही है, जो संभावित रूप से एक समावेशी शिक्षण वातावरण में बाधा डाल रही है.’

उन्होंने कहा कि विभाजनकारी प्रथाओं पर शिक्षा को प्राथमिकता देना और एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है जहां छात्र धार्मिक प्रथाओं के प्रभाव के बिना शिक्षाविदों पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

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