May 22, 2025

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास परिसर में आग से क्षतिग्रस्त हुए कमरे से कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिलने के बाद शनिवार (22 मार्च) देर रात सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से संबधित एक रिपोर्ट सार्वजनिक की, जिसमें दिल्ली पुलिस द्वारा दी गई कुछ फ़ोटो और वीडियो भी शामिल हैं. इसमें जले हुए कमरे में नकदी की मौजूदगी दिखाई गई है.

रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम  कोर्ट ने इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस डीके उपाध्याय की रिपोर्ट और यशवंत वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों पर उनके बचाव को भी सार्वजनिक किया, जिसमें उन्होंने कमरे में नकदी रखे जाने से इनकार किया है और इस मामले में साजिश का आरोप लगाया है.

इस संबंध में जारी प्रेस विज्ञप्ति में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी.एस. संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अनु शिवरामन की तीन सदस्यीय समिति गठित की है.

इसमें आगे यह भी कहा गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस उपाध्याय को फिलहाल जज वर्मा को कोई भी न्यायिक कार्य न सौंपने के लिए कहा गया है.

इस विज्ञप्ति के साथ ही जस्टिस उपाध्याय द्वारा शुक्रवार (21 मार्च) को सीजेआई  संजीव खन्ना को लिखा गया एक पत्र भी संलग्न है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उनका ‘प्रथम दृष्टया मनाना है कि पूरे मामले की गहन जांच की आवश्यकता है.’

अपनी रिपोर्ट में जस्टिस उपाध्याय ने कहा है कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त के अनुसार, जज वर्मा के आवास पर तैनात एक गार्ड ने आग लगने के बाद बताया कि 15 मार्च की सुबह जिस कमरे में आग लगी थी, वहां से आंशिक रूप से जली हुई वस्तुएं हटा दी गई थीं.

जस्टिस उपाध्याय ने मामले की आगे की जांच के लिए सीजेआई को लिखा है, जिसमें कहा गया है कि उनके द्वारा की गई जांच में प्रथम दृष्टया बंगले में रहने वाले लोगों, नौकरों, माली और सीपीडब्ल्यूडी (केंद्रीय लोक निर्माण विभाग) के कर्मियों (यदि कोई हो) के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के कमरे में प्रवेश या पहुंच की संभावना नहीं दिखती है.

जस्टिस उपाध्याय द्वारा जले हुए कमरे में मिली नकदी, उसके स्रोत और 15 मार्च की सुबह उसे किसने हटाया, इस बारे में पूछे जाने पर जज वर्मा ने शुक्रवार को अपने जवाब में कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा उस स्टोररूम में कभी भी कोई नकदी नहीं रखी गई थी.

इस संबंध में जस्टिस वर्मा ने कहा कि जिस जले हुए कमरे में नकदी मिली थी, वह खुला हुआ था, घर के प्रवेश द्वार से वहां पहुंचा जा सकता है और ये कमरा उनके रहने वाली जगह से बिल्कुल अलग है.

अपने बचाव में जस्टिस यशवंत वर्मा ने कहा है कि जब आग लगी तब वे मध्य प्रदेश में थे, और वे वापस दिल्ली 15 मार्च की शाम को पहुंचे. आग लगने के समय उनकी बेटी और स्टाफ़ घर पर मौजूद थे. लेकिन आग बुझाने के बाद उन्होंने स्टोर रूम में नकदी को नहीं देखा.

यशवंत वर्मा के मुताबिक उन्हें पहली बार जले हुए नकदी के बारे में तब पता चला था जब दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस ने उन्हें वीडियो दिखाया था.

उन्होंने कहा कि उन्होंने या उनके परिवार वालों ने आजतक उस स्टोर रूम में नकदी नहीं रखा और जिस नकदी का ज़िक्र किया जा रहा है वो उनका नहीं है.

जस्टिस वर्मा ने अपने जवाब में लिखा है, ‘ये कहना कि कोई एक ऐसे कमरे में नकदी रखेगा जो खुले में है और जहां कोई भी घुस सकता है, ये बिल्कुल अविश्वनीय है.’

उन्होंने आगे कहा कि वो नकदी केवल बैंक से निकालते हैं, और उनके पास सारे लेनदेन के काग़ज़ात हैं और जिस कथित नकदी की बात की जा रही है, वो न तो उन्हें दिखाया गया है और ना ही सौंपा गया है. इस मामले में उन्होंने अपने स्टाफ़ से भी पूछताछ की और उन्होंने भी कहा कि स्टोर रूम से कोई नकदी हटाया नहीं गया है.

उनका कहना है कि ये पूरा मामला उनके खिलाफ एक साज़िश है, जिसने उनकी प्रतिष्ठा को बर्बाद कर दिया है, जो उन्होंने एक दशक से ज़्यादा हाई कोर्ट का जज रहकर बनाई थी. साथ ही जस्टिस वर्मा ने यह भी कहा है कि आज तक उन पर कोई भी आरोप नहीं लगे हैं और अगर जस्टिस डीके उपाध्याय चाहें तो उनके न्यायिक कार्यकाल की जांच कर सकते हैं.

जस्टिस उपाध्याय ने सीजेआई खन्ना द्वारा ऐसा करने के लिए कहे जाने के बाद जस्टिस वर्मा से शुक्रवार दोपहर तक नकदी की खोज के बारे में लिखित रूप से जवाब देने का अनुरोध किया था.

अब मामला भारत के चीफ़ जस्टिस संजीव खन्ना द्वारा गठित कमिटी को सौंपा गया है. साथ ही पुलिस से जस्टिस यशवंत वर्मा के पिछले 6 महीने के कॉल रिकॉर्ड भी मांगे गए हैं, और जस्टिस यशवंत वर्मा को अपने फ़ोन से कोई भी डेटा हटाने से भी मना किया गया है.

मामले की न्यायिक ‘इन-हाउस’ जांच में तीन सदस्यीय समिति शामिल

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि जस्टिस उपाध्याय ने इस मामले की ‘इन-हाउस जांच प्रक्रिया‘ शुरू की है.

ज्ञात हो कि उच्च न्यायालयों के वर्तमान न्यायाधीशों के खिलाफ कदाचार के आरोपों की स्थिति में उनके खिलाफ सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए ‘इन-हाउस प्रक्रिया’ शुरू की जा सकती है. इस प्रक्रिया के अनुसार, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को यदि लगता है कि उस मामले मेें गहन जांच आवश्यक है, तो जज के जवाब के साथ न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत सीजेआई को भेजी जाती है.

इसके बाद यदि सीजेआई को भी लगता है कि इस संबंध में गहन जांच की आवश्यकता है, तो उन्हें तीन सदस्यीय समिति बनानी होती है, जिसमें दो उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और एक अन्य उच्च न्यायालयके जज शामिल होते हैं. ये समिति ‘फैक्ट फाइंडिंग’ प्रकृति की होती है, जिसके समक्ष सवालों के घेरे में खड़े न्यायाधीश को उपस्थित होने और अपनी बात कहने का अधिकार होता है. ये एक औपचारिक न्यायिक जांच नहीं है, जिसमें गवाहों की जांच और जिरह या वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व शामिल हो.

इस जांच में समिति या तो यह पाती है कि जांच के दायरे में आए न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों में कोई तथ्य नहीं है; या यह कि आरोपों में तथ्य है और वे न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए पर्याप्त गंभीर हैं; या यह कि आरोपों में तथ्य है लेकिन वे न्यायाधीश को हटाने के लिए पर्याप्त गंभीर नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसका कॉलेजियम जस्टिस वर्मा के तबादले पर ‘प्रस्ताव पारित करेगा’

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद में वापस स्थानांतरित करने के प्रस्ताव की भी बात की थी और कहा था कि इस प्रस्ताव की जांच सीजेआई खन्ना ने न्यायालय के बाकी कॉलेजियम के साथ की है, जिसमें उनके बाद अगले चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल हैं.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में परामर्शदाता न्यायाधीशों, संबंधित उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों और जस्टिस वर्मा को लिखे गए पत्रों के जवाबों की जांच की जाएगी, उसके बाद कॉलेजियम ‘प्रस्ताव पारित करेगा.’

इस बीच, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन ने भी एक बयान जारी किया और कहा कि वे  ‘कूड़ादान’ नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के एक सदस्य ने द वायर को बताया, ‘हमें सीजेआई ने आश्वासन दिया था कि स्थानांतरण केवल शुरुआत है और निश्चित रूप से उनके द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई की जाएगी.’

सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश ने भी कहा, ‘ इस मामले में हमें एक कड़ा संदेश देने की जरूरत है कि किसी भी तरह की नापाक हरकतें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी. उन्हें केवल उनके मूल उच्च न्यायालय में वापस स्थानांतरित करने का निर्णय लेकर, हम क्या कहना चाह रहे हैं? कि जब बात अपने स्वयं के उच्च न्यायालय की आती है तो हमारे पास अलग नियम होते हैं?’

उन्होंने आगे कहा, ‘उम्मीद है कि अब जब सब कुछ खुलकर सामने आ गया है, तो सीजेआई और अन्य लोग कुछ ऐसा करेंगे जो पहले ही किया जाना चाहिए था. सबसे पहले, उनसे काम वापस लिया जाना चाहिए.’

जस्टिस वर्मा कौन हैं?

गौरतलब है कि जस्टिस वर्मा 12 अक्टूबर, 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे और 1 फरवरी, 2016 को वे स्थायी किए गए थे. इसके बाद जस्टिस वर्मा को सीजेआई एन.वी. रमना के कार्यकाल में 11 अक्टूबर, 2021 को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था. जस्टिस वर्मा 5 जनवरी, 2031 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे.

हालांकि, वे अपने मूल उच्च न्यायालय में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों में से नहीं हैं, लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में वे वर्तमान में तीन न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम के सदस्य हैं.

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