
Muzaffarpur: Prime Minister Narendra Modi addresses during a BJP rally in Bihar's Muzaffarpur on April 30, 2019. (Photo: IANS)
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने संसद में बताया है कि पिछले 10 सालों में राजनीतिक नेताओं के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के 190 से अधिक मामलों में से केवल दो मामलों में ही आरोप साबित हो पाए हैं.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री पंकज चौधरी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्यसभा सांसद एए रहीम द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब दे रहे थे.
रहीम ने पूछा था कि पिछले दस सालों में सांसदों, विधायकों और स्थानीय प्रशासन के सदस्यों के खिलाफ ईडी के कितने मामले दर्ज किए गए हैं. उन्होंने उन सांसदों और विधायकों की पार्टी का नाम बताने को कहा था और यह भी पूछा था कि किन सालों में कितने मामले दर्ज किए गए.
चौधरी ने कहा कि इस तरह का डेटा उपलब्ध नहीं है.
लाइव लॉ के अनुसार, इसके बजाय, पिछले 10 वर्षों के दौरान मौजूदा और पूर्व सांसदों, विधायकों, एमएलसी और राजनीतिक नेताओं या किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मामलों के वर्षवार विवरण वाली एक तालिका दी गई.

रहीम द्वारा पूछे जाने पर कि ‘क्या हाल के वर्षों में विपक्षी नेताओं के खिलाफ दर्ज ईडी मामलों में वृद्धि हुई है, और यदि हां, तो इस प्रवृत्ति का औचित्य क्या है’, मंत्री ने कहा कि ऐसी कोई जानकारी नहीं रखी गई है.
हालांकि, आंकड़ों के मुताबिक साल 2019 से 2024 के बीच मामलों की संख्या में उछाल दिखाता है, जिसमें सबसे अधिक मामले साल 2022-23 में दर्ज किए गए हैं.
दिसंबर 2024 में केंद्र सरकार ने सदन को बताया था कि साल 2019 से 2024 के बीच ईडी द्वारा दर्ज किए गए 911 मामलों में से 654 में ट्रायल पूरा हो गया है और 42 मामलों में 6.42% की दर से दोषसिद्धि हुई.
रहीम के इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या सरकार ने ईडी जांच की पारदर्शिता और दक्षता में सुधार के लिए कोई कदम उठाया है, मंत्री ने कहा, ‘ईडी भारत सरकार की एक प्रमुख कानून प्रवर्तन एजेंसी है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा) और भगोड़े आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 (एफईओए) के प्रशासन और प्रवर्तन का काम सौंपा गया है. ईडी विश्वसनीय सबूत/सामग्री के आधार पर जांच के लिए मामलों को उठाता है और राजनीतिक मान्यता, धर्म तथा अन्य आधारों के आधार पर मामलों में अंतर नहीं करता है. इसके अलावा, ईडी की कार्रवाई हमेशा न्यायिक समीक्षा के लिए खुली रहती है.’
एजेंसी पीएमएलए, 2002, फेमा, 1999 और एफईओए, 2018 के कार्यान्वयन के दौरान की गई कार्रवाई के लिए विभिन्न न्यायिक मंचों- न्यायाधिकरण, अपीलीय न्यायाधिकरण, विशेष न्यायालय, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के प्रति जवाबदेह है.