December 7, 2024

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा है कि 2010 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा राज्यसभा में पारित महिला आरक्षण विधेयक में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को शामिल नहीं करने को लेकर पार्टी में ‘100 प्रतिशत अफसोस’ है.

संविधान (128वां संशोधन) विधेयक-2023, जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करता है, गुरुवार (21 सितंबर) को राज्यसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया. हालांकि, इसके कार्यान्वयन के लिए कोई विशेष तारीख निर्धारित नहीं की गई है. इससे एक दिन पहले इसे लोकसभा ने पारित किया था.

गांधी ने शुक्रवार (22 सितंबर) को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘हमें इस बात का सौ फीसदी अफसोस है कि जब हम सरकार में थे तो हमने महिला आरक्षण विधेयक पारित करते समय ओबीसी को शामिल नहीं किया था.’

जहां विपक्षी दलों ने संसद में विधेयक को अपना समर्थन दिया है, वहीं उन्होंने दोनों सदनों में बहस के दौरान जाति के आधार पर उप-कोटा की मांग भी उठाई.

नए कानून में कहा गया है कि अनुच्छेद 239एए में संशोधन करके राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी, संविधान के अनुच्छेद 330 में संशोधन करके लोकसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी और अनुच्छेद 332 में संशोधन करके राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी.

वर्तमान में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीटें इन समुदायों की महिलाओं के लिए भी आरक्षित की जाएंगी.

लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जाति के आधार पर उप-कोटा के साथ-साथ ओबीसी महिलाओं को शामिल करने की वकालत की थी. बाद में राहुल गांधी, केसी वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे सहित अन्य कांग्रेस सांसदों ने भी अपने भाषणों के दौरान इसी तरह की बात की.

हालांकि, जब संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने 2010 में राज्यसभा में महिला आरक्षण के लिए एक विधेयक पारित किया था (जिसे वह कानून बनाने में विफल रही), उस विधेयक में भी ओबीसी महिलाओं या जाति के आधार पर उप-कोटा को शामिल नहीं किया गया था, जिसकी कांग्रेस अब मांग कर रही है. उस विधेयक को निचले सदन में नहीं लाया गया था और बाद में 15वीं लोकसभा की समाप्ति के साथ ही यह समाप्त हो गया था.

उन्होंने संवाददाताओं से कहा, ‘हमने अपना रुख नहीं बदला है; हम वह पार्टी हैं जिसने जातिगत जनगणना कराई थी. हमने जातिगत जनगणना का डेटा जारी नहीं किया; हमने आंतरिक चर्चा की. हमारे रुख में कोई परिवर्तन नहीं है.’

गुरुवार को संसद में पारित विधेयक का जिक्र करते हुए गांधी ने मोदी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए.

उन्होंने कहा, ‘यह विधेयक बहुत अच्छा है, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है. लेकिन जब हमने इसे पढ़ा तो पाया कि विधेयक के कार्यान्वयन से पहले जनगणना और परिसीमन करना होगा. इसे पूरा करने में 10 साल या शायद उससे भी अधिक समय लगे.’

हालांकि, नया कानून महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण प्रदान करता है, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ता है कि इसे अगली जनगणना और उसके बाद के परिसीमन अभ्यास के बाद ही लागू किया जाएगा.

गांधी ने कहा, ‘सरकार को जनगणना और परिसीमन पर दो खंडों को हटाना चाहिए और महिलाओं को उनकी उचित भागीदारी देनी चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘उसे यूपीए सरकार द्वारा की गई पिछली जातिगत जनगणना के आंकड़े भी जारी करने चाहिए, और अब एक नई जातिगत जनगणना आयोजित करनी चाहिए. मोदी सरकार जनगणना कराने में देरी क्यों कर रही है? उसे अब जातीय जनगणना करानी चाहिए. इसके बिना हम अपने देश के वंचित वर्ग को शक्ति प्रदान नहीं कर सकते. यदि हमारा लक्ष्य भारत में सत्ता को अधिक समान रूप से वितरित करना है, तो हमें जाति पर डेटा की आवश्यकता होगी.’

‘इंडिया’ गठबंधन सत्ता में आया तो जाति आधारित जनगणना करवाएंगे

हाल के महीनों में, कांग्रेस देश में जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता पर फिर से जोर दे रही है.

पिछले हफ्ते पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में नई कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की पहली बैठक में पार्टी ने एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की ऊपरी सीमा बढ़ाने का वादा किया था.

पार्टी ने मध्य प्रदेश में भी सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराने का वादा किया है. इसने मोदी सरकार से भी देश में जाति जनगणना कराने का आग्रह किया गया है.

शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में गांधी ने भी 2024 में सत्ता में आने पर जातिगत जनगणना कराने का वादा किया.

उन्होंने कहा, ‘हम सरकार बनाते ही जाति आधारित जनगणना कराएंगे. देश को पता चलेगा कि ओबीसी, दलित और आदिवासियों का प्रतिशत कितना है. उन्हें देश चलाने में भागीदारी मिलेगी. यह कोई छोटी प्रक्रिया नहीं है; इसमें समय लगेगा लेकिन यह किया जाएगा.’

यह कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी जिसने पहली बार 2011-12 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) आयोजित की थी, लेकिन सरकार के भीतर इसके बारे में अलग-अलग राय के कारण इसका डेटा कभी जारी नहीं किया गया.

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि 2011 में यूपीए सरकार के दौरान पार्टी ने जातिगत जनगणना प्रक्रिया के हिस्से के रूप में लगभग 25 करोड़ घरों का सर्वेक्षण किया था.

नेता ने कहा, ‘उस डेटा में विसंगतियां थीं और उन्हें दूर करने की जरूरत थी. डेटा की यह साफ-सफाई 2013 में शुरू हुई, जो 2014 तक पूरी कर ली गई थी. और वह डेटा अब मौजूदा सरकार के पास है. यदि वे डेटा जारी करना चाहते तो वे कर सकते थे. लेकिन उन्होंने कहा कि वे डेटा जारी करने की स्थिति में नहीं हैं. अब वह डेटा भी एक दशक से अधिक पुराना हो गया है, इसलिए उस डेटा पर निर्भर नहीं रह सकते इसलिए नई जाति जनगणना करनी होगी.’

नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक अन्य नेता के अनुसार, पार्टी की ओर से जातिगत जनगणना के लिए नए सिरे से की गई मांग ‘हृदय परिवर्तन’ को नहीं दर्शाती है.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने पार्टी स्तर पर आजादी के बाद के दशकों में देश की जरूरत के आधार पर विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, चाहे वह कृषि, भोजन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी हो या वैश्वीकरण. उन्होंने कहा कि पिछले लगभग एक दशक से पार्टी ने निर्णय लिया है कि अब जरूरत ‘सामाजिक न्याय को मजबूत करने’ की है.

अपने नए रुख के साथ कांग्रेस मंडल-आधारित राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के करीब आ गई है, जिनके साथ उसने 26 विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन में हाथ मिलाया है. ये दल एक साल से अधिक समय से जाति आधारित जनगणना के लिए संघर्षरत हैं. दक्षिण के राजनीतिक दलों ने भी इसका समर्थन किया है.

इस महीने की शुरुआत में अपनी पहली समन्वय बैठक में ‘इंडिया’ ने कहा था कि गठबंधन देश में जाति आधारित जनगणना का मुद्दा उठाएगा, जो इस मुद्दे पर सभी गठबंधन के सभी घटकों के बीच आम सहमति की संभावना का संकेत है.

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