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भाषा सिंह /Newsclick
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए एजेंडा सेट करना शुरू कर दिया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का दांव प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए चला। इससे एक बात और अधिक साफ हो गई की वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव हो या फिर अब 2023 के अंत में होने वाले पांच विधानसभा के चुनाव—उन सब में भाजपा का एजेंडा नफ़रत और बेहद उग्र हिंदुत्व की राजनीति रहने वाली है। इसकी कमान और डिजाइन कोई और नहीं सीधे मोदी संभालेंगे। अभी यह जिम्मा वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नहीं सौंपने जा रहे हैं।यहां इस बात की जिक्र ज़रूरी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मई से जल रहे मणिपुर पर अपनी चुप्पी बरकरार रखी है। समान नागरिक संहिता के पक्ष में माहौल बनाते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की संविधान की दुहाई देना, सुप्रीम कोर्ट की दुहाई देना याद रहा, यह भी याद रहा कि देश एक परिवार है, यहां दो कानून कैसे लगाए जा सकते हैं, देश कैसे चल सकता है (मानो 1947 से लेकर 2023 तक देश चल ही नहीं रहा है), लेकिन उन्हें यह नहीं याद आया कि मणिपुर उन्हीं के नेतृत्व में चलने वाली डबल इंजन की सरकार का राज्य है, जहां उन्हीं की सरकार की विफलता की वजह से 55 दिनों से आग लगी हुई है, उसे ठीक करना उनका संविधानिक दायित्व है। लेकिन शायद मणिपुर 2024 के लिए अहम नहीं है, सीटों के हिसाब से और अभी वहां चुनाव भी नहीं होने। इसीलिए वह मध्य प्रदेश पहुंचकर चुनावी एजेंडा सेट करते हैं—आखिर इस राज्य में चुनाव जो होने हैं।
समान नागरिक संहिता के इर्द-गिर्द ध्रुवीकरण जब शुरू हो रहा है, तब इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत बोने का काम बहुत ही सुनियोजित ढंग से पिछले कुछ समय से पूरे देश में चल रहा है। इसके लिए त्योहारों से ज्यादा मुफ़ीद समय कोई और नहीं हो सकता। ईद उल-अज़हा (बकरीद) आया तो निशाने पर बकरे और मुसलमान दोनों आए। मेरे मेरठ, लखनऊ, हिमाचल प्रदेश-उत्तराखंड में रहने वाले अनगिनत मुसलमान दोस्त बकरीद को मनाने को लेकर ही हतोत्साहित नजर आए। गुड़गांव (गुरुग्राम) में रहने वाली दोस्त रेहाना ने बताया, `आसपड़ोस में इतना ज़हर फैल गया है कि दिल बुझ गया। गार्ड ने हंसते हुए पूछा कि कहीं मैं बकरा तो नहीं लाने का प्लान बना रही हूं, वरना हंगामा यहां भी हो सकता है। मैं जानती हूं कि गार्ड की आड़ में सोसायटी के लोग ये मैसेज मुझ तक पहुंचाना चाह रहे थे।’। इससे बदतर हाल उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और औद्योगिक नगरी कानपुर के हैं। उत्तराखंड के भवाली शहर में रहने वाले कई परिचित भी ऐसे ही दबे और वोकल ख़ौफ़ पैदा करने वाले मैसेज झेल रहे हैं। वे इन तमाम अनुभवों के बारे में सार्वजनिक भी नहीं कहना चाह रहे हैं—कुछ होगा नहीं, उलटे पुलिस हम पर ही झूठा केस बना देगी। मुंबई में देखा ही ना, अब यही हर जगह होगा!
सवाल, सिर्फ मुंबई के मीरा रोड की जेपी इंफ्रा सोसायटी का ही नहीं है, जहां के निवासी मोहसिन शेख व यासीन खान सहित 11 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। वजह वे बकरीद पर कुर्बानी देने के लिए अपने घर बकरे ले कर आए थे। सोसायटी में विरोध हुआ, उग्र भीड़ जुटी, हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे और वीडियो भक्त गण वायरल कर रहे हैं।
न्यूज़ चैनलों को मसाला मिला—हिंदू-मुसलमान का, तुरंत ही शो होने लगे। टीआरपी के खेल में हिंदू-मुसलमान के साथ अगर बकरा जुड़ जाए, तो सोने पर सुहागा ही है ना! ख़बर तो यह भी है कि कई तिहाड़ी पत्रकार, कई नेशन वॉन्टस टू नो वाले फेम के पत्रकारों ने अपने रिपोर्टरों को खास एसाइनमेंट भी दे दिया कि वे बकरा मंडी पर तैनात हो जाए, और खोजी पत्रकार बन देखें कि लोग ये बकरे किन मोहल्लों सोसाइटियों में ले जा रहे हैं…Investigative Journalism का तकाज़ा !
बहरहाल, उग्र हिंदुत्व के ब्रान्ड एंबेस्डर बनने की होड़ में सबसे आगे दौड़ रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उत्तर प्रदेश सरकार ने यह बीड़ा खुद ही उठा लिया। उत्तर प्रदेश के एसडीजी प्रशांत कुमार के अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार ने 2 हजार 213 संवेदशील स्थान अथवा हॉट स्पाट चिह्नित किये है…असमाजिक तत्वों से निपटने के लिए पीएसी की 238 कंपनियां तैनात की है, …दंगा नियंत्रण की प्रैक्टिस भी की गई । उनकी यह घोषणा सुनकर ऐसा लग रहा था कि मानो बकरीद न हो..कोई दंगा निपटने की तैयारी की घोषणा हो।
अब इस घोषणा पर तुरंत ही अमल भी शुरू हो गया। मुरादाबाद में पुलिस अधिकारी पहुंचे एकता विहार कालोनी। कैमरे पर ऐलान किया कि यहां कोई जानवर अंदर नहीं जाएगा—बकरा-बकरी-मुर्गा-भैंसा कुछ नहीं। अगर चला गया तो उसके विरुद्ध कार्रवाई होगी। यह लोगों के रहने के लिए कॉलोनी है, बकरे के लिए थोड़ी है। पूरे दिन रहेगी पुलिस आज…
इस सबको देखकर वाकई हम सब भारतीय नागरिक कितना फील गुड करते हैं, कर रहे हैं। पुलिस की ड्यूटी है यह देखना कि कोई दौड़ते भागते बकरा-बकरी-मुर्गा-मुर्गी कॉलोनी में न घुस जाए। अगर घुस गये तो कार्रवाई होगी। यह तो वाकई रामराज है!
इसी रामराज्य की चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में की थी, जहां वह अपनी छाती ठोंक-ठोंक कर कह रहे थे कि भारत में किसी के खिलाफ भेदभाव नहीं किया जाता—न जाति के आधार पर न ही धर्म के आधार पर। बस, मोदीजी और योगी जी को बकरा और मुर्गी प्रेम सिर्फ बकरीद पर उमड़ता है। यही वह दिन है जब मुसलमान अपनी धार्मिक मान्यता के तहत बकरे की कुर्बानी देते है। ऐसे में यह त्योहार अगर बिना ख़ौफ़ के बीत जाए, तो फिर बुलडोज़र राज पर संकट के बादल छा जाएंगे, मोदी जी की समान अचार संहिता का चुनावी दांव फंस जाएगा।
अगर ध्यान से देखा जाए तो पिछले कुछ सालों से हर त्योहार तनाव व नफ़रत के प्रचार-प्रसार, अलग ढंग की हिंसक-हमलावर मनोवृति का शिकार बनाए जा रहे हैं। इसकी शुरुआत उत्तर भारत में ज़रूर कावंड से हुई, लेकिन अब होली-दिवाली-क्रिसमस, नवरात्र, सरस्वती पूजा, ईद-बकरीद—यानी सब में एजेंडा समाज में भेद पैदा करने का चल गया है। ये सांस्कृतिक फ़ासीवाद—एक राष्ट्र-श्रेष्ठ राष्ट्र के नारे में परिलक्षित (reflect) होता है। इसकी ज़मीनी तैयारी चल रही है। अनगिनत संगठनों ने गोवा से लेकर हिमाचल-उत्तर प्रदेश तक इस नफ़रत को फैलाने के लिए कमर कस ली है। अनगिनत शहरों में हिंदू नौजवानों की अस्त्र-शस्त्र में ट्रेनिंग की खबरें स्थिति की भयावहता को उजागर करती हैं।
दरअसल, 2024 का आम चुनाव हो या फिर इसके एक साल बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का 100 साल पूरा होने का जश्न—इन सबके जरिए ही भारतीय लोकतंत्र को संवैधानिक लोकतंत्र से मनुवादी सेंगौल (राजदंड) में ले जाने का प्लान है। समान नागरिक संहिता पर ध्रुवीकरण उसी दिशा में बढ़ा हुआ एक क़दम है।