
नई दिल्ली: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के भविष्य के बारे में 33 देशों में किए गए अध्ययन में भारत 24वें स्थान पर आया है.
अध्ययन करने वाली संस्था द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच का दावा है कि वह अमेरिका में वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में स्थित एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपाती थिंक टैंक है.
रिपोर्ट यह जानने का प्रयास करती है कि दुनिया भर में विभिन्न प्रकार और स्तरों के प्रतिबंधों का सामना करने वाले लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कितना समर्थन करते हैं और उनके अनुसार लोगों को किन विशिष्ट मुद्दों पर खुलकर चर्चा करने और आलोचना करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

स्कैंडिनेवियाई देश (नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन) और दो लोकतांत्रिक पिछड़े देश (हंगरी और वेनेजुएला) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए सबसे अधिक समर्थन दिखाते हैं. रिपोर्ट में पाया गया है कि मुस्लिम बहुल देशों और वैश्विक दक्षिण में सबसे कम समर्थन दिखाया गया है.
ये सर्वेक्षण द फ्यूचर ऑफ फ्री स्पीच द्वारा विकसित किए गए थे और अक्टूबर 2024 में YouGov और इसके कुछ अंतरराष्ट्रीय साझेदारों द्वारा कार्यान्वित किए गए थे. वे थिंक-टैंक की पिछली रिपोर्ट, ‘फ्री स्पीच के बारे में कौन परवाह करता है?’ पर आधारित थी, जो 2021 में प्रकाशित हुई थी.
भारत का कुल स्कोर 62.63 है.
2021 और 2024 में आठ प्रश्नों पर भारत के स्कोर निम्नलिखित हैं.

यद्यपि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए समर्थन और वास्तविक स्तर में काफी भिन्नता दिखती है, फिर भी भारत, हंगरी और वेनेजुएला के साथ उन देशों में से एक है, जहां लोकप्रिय मांग की तुलना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का वास्तविक स्तर अपेक्षाकृत कम है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय और दक्षिण अफ्रीकी उन लोगों में शामिल हैं, जो मानते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन में उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण प्रगति की है. साथ ही, ‘हालांकि पर्यवेक्षक और रैंकिंग इस बात पर सहमत हैं कि भारत में स्थिति और बदतर हो गई है.’

रिपोर्ट में पाया गया है कि जबकि अधिकांश राष्ट्र अमूर्त रूप में मुक्त अभिव्यक्ति के लिए काफी समर्थन दिखाते हैं, लेकिन यही समर्थन कम और अधिक विभाजित है जब अल्पसंख्यकों या किसी के अपने धर्म के लिए अपमानजनक बयानों, समलैंगिक संबंधों का समर्थन करने या राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने की बात आती है.
जबकि आम तौर पर लोग सरकार की आलोचना की अनुमति देने के पक्ष में हैं; सभी देशों में औसत समर्थन 90% है.
हालांकि, भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस और सर्वे सैंपल में शामिल चार अफ्रीकी देशों के साथ उन कुछ देशों में से है- जहां 75% से कम आबादी का मानना है कि सरकार को आलोचना को रोकने की अनुमति दी जानी चाहिए.

दिलचस्प बात यह है कि जब रिपोर्ट राजनेताओं की डीपफेक तस्वीरें अपलोड करने की इच्छा पर गौर करती है तो रैंकिंग मौलिक रूप से भिन्न हो जाती है: भारत, हंगरी, इंडोनेशिया, ताइवान और दक्षिण कोरिया के नागरिक सबसे अधिक सहिष्णु हैं, जबकि वेनेजुएला, चिली, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी के नागरिक सबसे कम सहिष्णु हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि डीपफेक के बारे में राय एक अलग तर्क को प्रतिबिंबित करती है.

रिपोर्ट में निम्नलिखित मुक्त अभिव्यक्ति मुद्दों पर चर्चा की गई है:
- निजी भाषण, मीडिया और इंटरनेट से संबंधित सेंसरशिप की अस्वीकृति के बारे में तीन प्रश्न.
- सरकार की आलोचना करने वाले, धर्म के प्रति अपमानजनक, अल्पसंख्यक समूहों के प्रति अपमानजनक, समलैंगिक संबंधों का समर्थन करने वाले या राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने वाले संवेदनशील प्रकार के बयानों को अनुमति देने की इच्छा के बारे में पांच प्रश्न.
- राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्राथमिकता दिए जाने के बारे में दो प्रश्न.